कंधा नहीं मिलने पर पत्नी का शव लेकर बीस घण्टे में लुधियाना से गांव पहुंचा मजदूर

कोरोना संकट के दौर में जिंदगियां बचाने के लिए तमाम जतन जारी हैं, वहीं दूसरी ओर इंसानियत की परीक्षा भी हो रही है। बलरामपुर जिले में ऐसा ही मामला सामने आया है। जहां लुधियाना में मजदूरी करने वाले युवक को अपनी पत्नी के शव को कंधा देने वाले चार लोग नहीं मिले, तब उसे 27 हजार कर्ज लेकर एम्बुलेंस से अपनी पत्नी का शव अपने गांव लाना पड़ा। गांव पहुंचे युवक और उसके तीन बच्चों को गांव में बने पृथक केंद्र में भेज दिया गया है। दद्दन (32) अपनी पत्नी और तीन छोटे-छोटे बच्चों के साथ लुधियाना में रहकर मजदूरी करता था। गत 26 अप्रैल को अपनी गर्भवती पत्नी की तबियत खराब होने पर लुधियाना के सिविल अस्पताल ले गया। जहां डॉक्टरों ने पत्नी को मृत घोषित कर कोरोना जांच रिपोर्ट आने तक शव देने से इनकार कर दिया।
दद्दन के परिजन के मुताबिक वह अपने छोटे-छोटे बच्चों को लेकर घर और अस्पताल के बीच भटकता रहा। चार दिन बाद कोरोना जांच रिपोर्ट नेगेटिव आने के बाद अस्पताल प्रशासन ने पत्नी गीता का शव सौंपा दिया। दद्दन ने बताया कि लॉकडाउन के बाद काम बंद हो जाने के बाद से जो कुछ पैसा उसके पास बचा था वह भी खत्म हो गया। आर्थिक तंगी के कारण शव का अंतिम संस्कार लुधियाना में ही करने का फैसला किया लेकिन पड़ोसियों ने कोरोना और लॉकडाउन के कारण हाथ खड़े कर दिए। जब अर्थी को कंधा देने के लिए चार लोग भी नहीं मिले,तब लोगों से 27 हजार रुपये कर्ज लेकर एम्बुलेंस से अपनी पत्नी का शव रखवाया और अपने गांव आने के लिए निकल पड़ा।
दद्दन ने बताया कि वह करीब 20 घंटे लगातार सफर के बाद अपने गांव कठौवा पहुंचा। हालांकि, गांव पहुंचते ही ग्राम प्रधान और स्वास्थ्य विभाग की टीम ने उसे और उसके तीन बच्चों मधु (सात), सुमन (छह) और शिवम (पांच) को गांव के प्राथमिक विद्यालय में बने पृथक केंद्र में भेज दिया। ग्राम प्रधान सुशील तिवारी ने बताया कि दद्दन की पत्नी की कोरोना जांच रिपोर्ट नेगेटिव आई है। लुधियाना सिविल अस्पताल की रिपोर्ट को देखकर परिवार वालों के साथ मिलकर दद्दन की पत्नी गीता का अंतिम संस्कार कर इसकी सूचना प्रशासन को दे दी गई है। पुलिस अधीक्षक देव रंजन वर्मा ने बताया कि दद्दन और उसके बच्चों  की कोविड-19 जांच कराई जा रही है। रिपोर्ट में संक्रमण की पुष्टि नहीं होने पर 14 दिन बाद उन्हें छोड़ दिया जाएगा।


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