ऐसे दरोगा पर यूपी की जनता को गर्व है

कोरोना के चलते देश मे मौन हाहाकार मचा है। बुजुर्ग इससे सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं। राजधानी लखनऊ में एक ऐसा ही संकट आया जिसमें एक दरोगा देवदूत बनकर सामने आया। इस दारोगा ने मानवता की अमिट मिसाल पेश की है। वाकया कुछ ऐसा है जहाँ स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से मैनेजर पद से रिटायर बुजुर्ग जी के मुखर्जी (80वर्ष) अविवाहित थे। राजधानी लखनऊ के जानकीपुरम के सेक्टर-आई में वह अकेले ही रहते थे। कोरोना संकट के लाकडाउन बीच घर पर कामवाली का आना भी बंद हो गया। 24 मार्च को मुखर्जी साहब गेट तक घिसटते आये। गेट का ताला भीतर से बंद था। पड़ोसी डॉक्टर सजल मिश्र ने पुलिस को सूचना दी। दरोगा सूर्य प्रताप सिंह वहां पहुंचे तो उन्होंने बुजुर्ग को बेसुध पाया। पुलिस कर्मी चहारदीवारी कूद कर दाखिल हुए। थाने ले जाकर उन्हें जूस पिलाया। कुछ सम्भलने पर उन्होंने बताया कि वह पांच दिन से भूखे-प्यासे थे। दरोगा सूर्य प्रताप सिंह ने उन्हें बृद्धाश्रम पहुंचाया। यहीं नही रुके। रोज फोन करके हाल भी लेते रहे। 11 अप्रेल को मुखर्जी साहब का निधन हो गया। कोई नाते-रिश्तेदार नही। स्थानीय लोगों के मुताबिक इकलौती बहन बंगाल में कहीं रहती है और वर्षों पूर्व वह भी उनसे रिश्ते तोड़ चुकी है। दरोगा सूर्य प्रताप सिंह ने ही बेटे का फर्ज निभाया। उन्होंने ही अंतिम संस्कार किया। बंगाली पंडित खोजकर उनके रीति-रिवाजों के मुताबिक विधि-विधान से। अब 21 अप्रेल को तेरहवीं है। उनकी पास बुक में पांच लाख रूपये हैं। नॉमिनी का पता लगाया जा रहा है। मकान की भी पुलिस निगरानी कर रही है। कोरोना की विपदा विकट है। तमाम लोग और संस्थाएं सेवा-सहयोग के नेक प्रयास कर रहे हैं। ऐसी कोशिशों में पुलिस की सक्रिय हिस्सेदारी की जगह-जगह से अच्छी खबरें आ रही हैं। उसकी सराहना भी हो रही है। लेकिन दरोगा सूर्य प्रताप सिंह ने तो करुणा-संवेदना की अलग ही नजीर पेश कर दी। बेहद प्रेरक और अनुकरणीय। अपने पद से उनका कद कहीं और बड़ा हो गया। ऐसे संवेदनशील पुलिस कर्मी को समदर्शी परिवार नमन करता है। 


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